विक्रम विश्वविद्यालय में गूंजी संस्कृत: कुलगुरु ने संस्कृत को वैज्ञानिक भाषा घोषित करने का प्रस्ताव रखा, संस्कृत दिवस पर यूनिवर्सिटी में पूर्ण आयोजन संस्कृत में हुआ!

उज्जैन लाइव, उज्जैन, श्रुति घुरैया:

विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन का प्रांगण गुरुवार को उस समय आध्यात्मिक और बौद्धिक ऊर्जा से भर उठा जब संस्कृत दिवस के अवसर पर संपूर्ण आयोजन विद्यालयीन विद्यार्थियों द्वारा संस्कृत भाषा में किया गया। आयोजन ने न केवल भाषा की गरिमा को पुनर्स्थापित किया, बल्कि यह भी सिद्ध किया कि संस्कृत अब केवल धार्मिक अनुष्ठानों की भाषा नहीं, बल्कि वैज्ञानिक शोध और संवाद की सशक्त माध्यम बन सकती है।

इस अवसर को खास बना दिया विश्वविद्यालय के कुलगुरु प्रो. अर्पण भारद्वाज के उस निर्णय ने, जब उन्होंने संपूर्ण भाषण संस्कृत में दिया और उपस्थित विद्यार्थियों से संवाद भी उसी भाषा में किया। प्रो. भारद्वाज ने संस्कृत को “वैज्ञानिक भाषा” का दर्जा देने का प्रस्ताव रखते हुए कहा कि आधुनिक शोध में संस्कृत को शामिल किया जाना चाहिए, क्योंकि इसकी संरचना और व्याकरणिक शुद्धता उसे विश्लेषणात्मक और सटीक संवाद के लिए उपयुक्त बनाती है।

कार्यक्रम का आयोजन विक्रम विश्वविद्यालय की संस्कृत, वेद एवं ज्योतिर्विज्ञान अध्ययनशाला द्वारा किया गया था, जिसमें उज्जैन के विभिन्न विद्यालयों के संस्कृत विषय के विद्यार्थियों ने भाग लिया। आयोजन स्थल सम्राट विक्रमादित्य शलाका दीर्घा रही, जहां विद्यार्थियों की प्रस्तुतियों, वक्तव्यों और मंत्रोच्चार ने एक अद्भुत वातावरण निर्मित किया।

कार्यक्रम की अध्यक्षता कुलगुरु प्रो. अर्पण भारद्वाज ने की, जबकि विशिष्ट वक्ता के रूप में देश के प्रसिद्ध संस्कृत विद्वान प्रो. केदार नारायण जोशी उपस्थित रहे। प्रो. जोशी ने अपने वक्तव्य में कहा कि विश्व की अधिकांश भाषाओं की जड़ें संस्कृत में समाहित हैं और यह भाषा केवल प्राचीन ज्ञान का भंडार नहीं, बल्कि भविष्य की तकनीकी भाषा भी बन सकती है। उन्होंने नई पीढ़ी से आग्रह किया कि वे संस्कृत को केवल एक विषय नहीं, एक विचारधारा के रूप में अपनाएं।

कार्यक्रम में कुलसचिव डॉ. अनिल कुमार शर्मा विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित थे, जबकि उत्कृष्ट उच्चतर माध्यमिक विद्यालय की प्राचार्या डॉ. विभा शर्मा ने विशेष अतिथि के रूप में अपनी उपस्थिति से आयोजन को गरिमा प्रदान की।

इस सारस्वत आयोजन में विश्वविद्यालय के कई प्रमुख शिक्षाविदों एवं संस्कृत प्रेमियों ने भाग लिया, जिनमें डॉ. रश्मि मिश्रा, डॉ. सर्वेश्वर शर्मा, डॉ. रुक्मणी भदौरिया, डॉ. अजय शर्मा, डॉ. शैलेन्द्र वर्मा प्रमुख रहे। कार्यक्रम का संयोजन एवं संचालन डॉ. गोपालकृष्ण शुक्ल द्वारा अत्यंत सुस्पष्ट और प्रभावशाली रूप में किया गया। वहीं अंत में डॉ. विष्णु प्रसाद मीणा ने सभी आगंतुकों के प्रति आभार व्यक्त किया।

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